Bhajan Lyrics
(Written by Saint Kabir Das) :
बिना प्रेम धीरज नहीं,
बिरह बिना बैराग..
सतगुरु बिना ना छुटिहै,
मन मनसा की दाग
मन मनसा की दाग
नैना नीर भर नाइ आँख
रहत बसे निस जाम
पपीहा ज्यूँ पीहू पीहू करे ...
कब मिल होंगे त्राण.. त्राण..त्राण
बिना प्रेम धीरज नहीं ..
आई ना सकु तुझपे
सकु ना तुझ बुलाई
जियरा युही लैहु उड़ी..
बिरह तपाई ..तपाई ..तपाई..
बिना प्रेम धीरज नहीं
Kabir Bhajan Meaning :
जिसके ह्रदय में प्रेम न हो वह धैर्य का अर्थ नहीं समझ सकता और बिरह कि वेदना को केवल एक बैरागी ही समझ सकता है, प्रेम, धीरज, बिरह और बैराग का सम्बन्ध होता है, उसी प्रकार गुरु और शिष्य के ह्रदय का सम्बन्ध होता है, बिना गुरु के शिष्य के मन से इच्छाओं को कोई और नहीं मिटा सकता है |
नरेंद्र (विवेकानंद) पहली बार रामकृष्ण से नवंबर 1881 को सुरेन्द्रनाथ मित्रा के घर सम्हारो में मिले, जहा नरेंद्र को संगीत गायन के लिए बुलाया गया था. परमहंस जी ने नरेंद्र से प्रभवित होकर उन्हें दक्षिणेश्वर आने को कहा.
Bhajan sung by Vivekanand during his first meeting with his Guru Sri Ramakrishna Paramahansa Dev to pay obeisance and respect.
Disclaimer: The video and the lyrics belong to their respective owners. I do not own any intellectual property rights. All the rights go to their respective content owners. I am just propagating. The sole purpose of this video is to deliver knowledge and devotion to those seeking sublimation and salvation.
0 Comments